संस्कृति और विरासत
- बोली:
महासमुन्द जिले मे बोली जाने वाली भाषा मुख्यतया `छत्तीसगढ़ी` हैंं पर हिन्दी भी गांवो में बोली जाती हैंं। जिले के दो ब्लॉक सरायपाली और बसना, उड़ीसा राज्य से लगे हुए हैंं इसलिए यहां पर `उड़िया` भी बोली जाती हैं।
- वेशभूषा:
छत्तीसगढ़ से जुड़ी हुई पंरपराओ का निर्वाह करते हुए यहां के लोगो के जनजीवन में भी इसका खासा असर हैंं। जिले के ग्रामीण क्षेत्रो में मूलत: निवास करने वाले लोग साधारण वेशभूषा में दिखाई देते हैं। पुरूष सामान्यतया `धोती कुर्ता`, `गमछा` पहनते हैं और सिर में पागा (पगड़ी) का प्रयोग करते हैं साथ ही पैरो में एक विशेष प्रकार का जूता पहनते हैं। जिसे `भदई` कहते हैं। महिलाए सामान्यतया `साड़ी और ब्लॉउज` (लुगरा-पोलगा) पहनती हैं तथा अपने पैरो में एक विशेष जूता जिसे `अटकारिया` कहते हैं पहनती हैं। छत्तीसगढ़ी महिलाओ की भांति भी यहंा की महिलाए अपने सौन्दर्य के प्रति बहुत ध्यान देती हैं। आभूषणो में मुख्यतया बिछिया, पैरपटटी जिसे पांव में पहनते हैं। कमर में कमरबंध या करधन पहनती हैं। महिलांए नांक में `फुल्ली` एवं कान में `बाला` पहनती हैं। उड़ीसा से लगे हुए क्षेत्र जैसे सरायपाली एवं बसना की महिलाएं जामुनी एवं हरे रंग की साड़िया शौक से पहनती हैं।
- व्रत एवं त्यौहार:
जिले के निवासी व्रत एवं त्यौहारो का आनंद वर्षभर लेते रहते हैं। सामान्यतया चैत्र एवं फागुन महीने में अधिकतर त्यौहार मनाये जाते हैं। त्यौहारो के अवसर पर उपहारो का आदान-प्रदान किया जाता हैं एवं अपने सगे संबधियो को दावत भी दी जाती हैं। त्यौहारो का आनंद देखते ही बनता हैं।
तीज एवं त्यौहार | माह |
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राम नवमी | चैत्र |
अक्ती | वैशाख |
माता पहुंचनी | आषाढ़ |
हरेली | सावन |
सवनाही | सावन |
आठे गोकुल | भादो |
कृष्ण जन्माष्टमी | भादो |
तीजा | भादो |
पोरा(पोला) | भादो |
गणेश चतुर्थी | भादो |
पितर | क्ंवार |
नवाखाई | क्ंवार |
दशहरा | कार्तिक |
देवारी (दीपावली) | कार्तिक |
जेउठन (देवउठनी) | कार्तिक |
छेरछेरा | पौष पूर्णिमा |
मेला | माघ पूर्णिमा |
होली | फागुन पूर्णिमा |
गुरू घासीदास जंयती | दिसंबर |